Thursday, 26 May 2016

ukti

दिवस का अवसान होने  पर
सांध्य कालीन आकाश ने  अपने
झिलमिलाते  केशों मैं  एक  मोटी खोंस लिया
मैंने उसे अपने अंतरतम मैं छिपे हुए
डोरी रहित गल हार  मैं पिरो लिया

_  रबीन्द्र नाथ  टैगोर 

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