Wednesday, 29 November 2023

News letter

 कुछ साल बाद मैं अपने पिता द्वारा दी गई एक किताब पढ़ रहा था।  जिसे भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉण् राधाकृष्णन् द्वारा लिखा गया था, जिन्होंने हार्वर्ड डिविनिटी स्कूल में विश्व धर्म 

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अध्ययन केंद्र का उद्घाटन भी किया था। पुस्तक मेंए राधाकृष्णन ने लिखा है कि कैसे उन्होंने खुद को केवल हिंदू सभ्यता ही नहीं बल्कि संपूर्ण मानव सभ्यता के अनुनायक के रूप में पहचाना। मेरे हृदय तंत्री के तार बज उठे जो आज भी मेरे जीवन में गूंज रहेे है।

इन दो घटनाओं और मेरी मां और पिता द्वारा मुझे दिए गए दो खूबसूरत उपहारों ने मुझे अपने आसपास की दुनिया में विविधता को संजोने और उसका दोहन करने की सीख देकर मेरे जीवन को बेहद समृद्ध बनाया।

मेरा अपना परिवार हिंदू था और जब मैं पुरानी दिल्ली में बड़ा हो रहा था तो इसने दुनिया को देखने के मेरे नजरिए को आकार दिया। हिंदू धर्म अपनी मान्यताओं और अनुष्ठानों के साथ आया था, अपने आप मेरे अंदर समाहित हो रहा था लेकिन अंततः जोर अपने स्वयं के अनुभवों के माध्यम से सत्य खोजने पर था। मैंने अपना जीवन एक आस्तिक के रूप में शुरू किया, लेकिन साथ ही एक सत्य के खोजी के रूप में भी।☻


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