Sunday 24 March 2024

उक्ति

 बादल रोज नया होता है । वह आता जाता नहीं है जन्म लेता है

 सड़क की ईंट को ठोकर मारोगे उछलकर तुम्हें ही आहत करेगी ।

कभी हम भी झूमते चलते थे अब चलने में झूमते हैं ।

आजकल कोठियों के आगे लिखा रहता  है सावधान यहॉं कुत्ते हैं ।

घर परिवार में पिता पुत्र, पुत्रवधू पत्नी सब हारते भी हैं और जीतते भी हैं मॉं हमेषा हारती है।

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अंधेरा चादर उढ़ाता है उजाला उघाड़ देता है ।

कालिख पोतने वाले के हाथ भी काले होते हैं

स्वभाव आदमी छोड़ता नहीं है। दुःख में और निखर जाता है । बांस में छेद करो तो मधुर स्वर देने लगता है।

दृष्टि हीन को अंधा कहने वाला स्वयं अंधा होता है, देखना तो उसे है ।

हम पत्थर युग की ओर बढ़ रहे हैं । सारे आविष्कार नष्ट करदो तब शायद अधिक सभ्य हो जायेंगे।

साधन हीन व्यक्ति के लिये अतिथि देवता है और साधन सम्पन्न के लिये मुसीबत।


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