बादल रोज नया होता है । वह आता जाता नहीं है जन्म लेता है
सड़क की ईंट को ठोकर मारोगे उछलकर तुम्हें ही आहत करेगी ।
कभी हम भी झूमते चलते थे अब चलने में झूमते हैं ।
आजकल कोठियों के आगे लिखा रहता है सावधान यहॉं कुत्ते हैं ।
घर परिवार में पिता पुत्र, पुत्रवधू पत्नी सब हारते भी हैं और जीतते भी हैं मॉं हमेषा हारती है।
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ऽ अंधेरा चादर उढ़ाता है उजाला उघाड़ देता है ।
कालिख पोतने वाले के हाथ भी काले होते हैं
स्वभाव आदमी छोड़ता नहीं है। दुःख में और निखर जाता है । बांस में छेद करो तो मधुर स्वर देने लगता है।
दृष्टि हीन को अंधा कहने वाला स्वयं अंधा होता है, देखना तो उसे है ।
हम पत्थर युग की ओर बढ़ रहे हैं । सारे आविष्कार नष्ट करदो तब शायद अधिक सभ्य हो जायेंगे।
साधन हीन व्यक्ति के लिये अतिथि देवता है और साधन सम्पन्न के लिये मुसीबत।
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