Sunday, 6 May 2018

anant ki khoj

ईश्वर कोई  विचित्र जीव नहीं है  जिसे हम खोजने को व्याकुल हैं  वो  हमारा होना परिचय है  हम उससे बने हैं  हम उससे अलग नहीं हैं।
 जब से मनुष्य ने  ऑंखें खोली   वह अपने रचयिता को  ढूंढ है नए  नए  ढंग से और नए नए धर्म विकसित हो जाते हैं लेकिन वह  मिलता  पर उसका अस्तित्व कण  मैं महसूस होता है  उसकी  विराट  सत्ता उसके अस्तित्व का  बोध  कराती है अगर मिल जायेगा तो वह अनंत कहाँ रहेगा फिर तो वह वह गम्य  उयलब्ध  वास्तु  हो  जायेगा फिर  उसका ईश्वरत्व  समाप्त   हो  जायेगा 

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