Saturday, 18 January 2025

jeevan kya hai

 

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Tuesday, 14 January 2025

makar sankrati

 मकर संक्रांति




‘माघ मकरगत रवि जब होई ,तीरथ पतिहि आव सब कोई ’... तुलसीदास 

जब सूर्य मकर राषि में, प्रवेष करता है तो ब्रह्माण्ड के सभी देवी देवता तीर्थकर प्रयाग पर एकत्रित होते है।मकर संक्रांति का पर्व आध्यातिमक और वैज्ञानिक दोनों ही दृ िटयों से महत्वपूर्ण हैों

मकर संक्राति सूर्य उपासना का दिन है सूर्य पृथ्वी का आधार है पृथ्वी पर जीवन सूर्य से ही है इसीलिये उसे सविता भी कहते हैं। जीवन का आधार ज्ञान का आधार सम्पूर्ण विष्व को प्रकाषित करने वाले तेजपुंज अर्थात् ज्ञान का प्रकाष फैलाने वाला,पृथ्वी पर जीवन के साथ ही सूर्याेपासना प्रारम्भ हुई। वैदिक काल से जिनकी उपासना की जाती है क्योंकि सम्पूर्ण सौर मंडल सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करता है।और परिक्रमा पूरी होने पर  वह दिशा बदल कर उत्तर की ओर बढ़ता हैसूर्य स्वयं ही बदलाव का अधिपति है इसी को उत्तरायण की स्थिति कहते हैं। भारतीय वर्ष की स्थिति सूर्य से ही चलती है । इसी दिन से हमारी धरती एक नये वर्श में नयी गति में प्रवेष करता है ।साथ ही सूर्य यात्रा पथ भी बदलता है


हिन्दू धर्म में वर्ष को दो भागों में बांटा है उत्तरायण और दक्षिणायन इसी प्रकार माह को भी दो भागों में बांटा है शुक्लपक्ष और कृष्ण पक्ष

‘तमसो मा ज्योर्तिगमय ’हे सूर्यदेव हमे अंधकार से प्रकाष की ओर ले चलो। सूर्य महर्षि कष्यप व अदिति के पुत्र है उनकी दो पत्नियों संज्ञा व छाया है। उनके छः संतान है। सूर्य हर माह एक राषि पर भ्रमण करते हैं अर्थात् 12 महिने और बारह राषियाँ इस प्रकार हर माह एक संक्राति होती है। जब सूर्य मकर राषि मंे प्रवेष करता है तब मकर संक्राति होती है और इस दिन सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं। बारह राषियों में छः राषियों में सूर्य उत्तरायण होते है ये है मकर से मिथुन तक ओर कर्क से धनु राषि तक सूर्य दक्षिणायन होते है। ये पृथ्वी के छः माह देवताओं के रात और दिन हैं । उत्तरायण के छः माह देवताओं का एक दिन और दक्षिणायन के छः माह देवताओं के एक रात होती हैं। उत्तरायण काल को दो वेदों मे पुण्य काल माना है और साधना और सिद्धियों का फलीभूती करण काल । यह मुक्तिकाल है भीष्म पितामाह ने उत्तरायण काल मंे ही प्राण त्यागे। 

सूर्य कर्क संक्राति काल में दक्षिणायन और मकर संक्राति काल में उत्तरायण हो जाते है। कर्क संक्राति के समय सूर्य की पीठ हमारी ओर होती है और रथ का मुँह दक्षिण की ओर। मकर संक्राति काल से उत्तर की ओर पीठ पृथ्वी और मुख होता है। इस प्रकार उत्तरायण में सूर्य देव हमारे निकट होते है। ये पृथ्वी की ओर कुछ ढलते जाते है। नये साल में हिंदुओं का  पहला पर्व मकर संक्राति होता है। जब मास में जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है । तब मकर संक्राति का त्यौहार मनाया जाता है।

इस दिन से सूर्य की क्रांति में परिवर्तन  होना शुरू हो जाता है । इस त्यौहार में बसंत का आगाज होता है । यह त्यौहार हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है । पृथ्वी अपने नये स्प में ढलने लगती है इसलिये यह दिन अपने आप ष्षुभ हो जाता है। मकर संक्राति का दिन निष्चित है यही एक दिन ऐसा है भारतीय त्यौहारों में जो अंग्रेजी माह के अनुसार 14 जनवरी को पड़ता है लेकिन अब 21 वी सदी मंे यह 15 जनवरी को पड़ता है 19 वीं सदी मेें 12 या 13 जनवरी को पडता था। स्वामी विवेकानन्द का जन्म मकर संक्राति को हुआ था जबकि अग्रेजी तारीख में 12 जनवरी 1863 ई॰ में हुआ था। 75 वर्ष बाद एक दिन बढ़ जाता है। बीसवी षताब्दी के प्रारम्भ में यह 13 जनवरी केा आती थी फिर 14 जनवरी और अब 21 वी सदी में यह 15 जनवरी को पड़नी प्रारम्भ हो गई है क्योकि हर चौथे वर्ष लीप ईयर होने से एक दिन बढ़ जाता है। 

मंकर संक्राति के पीछे दो पौराणिक कथाऐं है।  राजा भगीरथ अपने पुरखे राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को मुक्ति दिलाने के लिये षिव जी की आराधना करके गंगा को पृथ्वी पर लाये थे गंगा के वेग को षिव जी ने अपनी जटाओं में सभांला वहाँ से षिव ने अपनी एक लट खोली ओर गंगा की एक धारा पृथ्वी पर बढ़ी। आगे भगीरथ और पीछे पीछे गंगा। गंगोत्री से हरिद्वार प्रयाग होते हुए कपिल मुनि के आश्रम में पहुँची यहीं पर कपिल मुनि ने सगर पुत्रों को क्रोधागिन से भस्म कर दिया था। 

वह दिन मकर संक्राति ही थी जिस दिन उनका भगीरथी के द्वारा तर्पण किया गया। आज वह गंगा सागर तीर्थ के रूप में माना जाता है। गंगा सागर के संगम स्थल पर नहाने से मोक्ष प्राप्त होता हे 

मकर संक्राति के दिन ही पितृ भक्त परषुराम ने अपनी माता का मस्तक पिता की आज्ञा मानकर काट दिया था। पिता के प्रसन्न होने पर वर माँगने की कहने पर परषुराम ने कहा था कि उनकी माँ को पुर्नजीवित कर दें। उनकी माता पुर्नजीवित हो गई यह दिन मकर संक्राति का पर्व है। 

मकर संक्राति पोंगल ,लोहिड़ी ,माघी ,मोगली ,बिहु,व खिचड़ी आदि नामों से है मकर संक्रांति की यह भी मान्यता है  िकइस दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्रान्त करने के लिये व्रत किया था। मान्यता है इस दिन भगवान् अपने पु.त्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हें चॅंकि शनि देव मकर  राशि के स्वामी हैं ।

मकर संक्राति इस बात की ओर इंगित करती है कि अब षीत ़ऋतु की विदाई है और ग्रीष्म ऋतु आने वाली है। भारत में हर दो माह ऋतु परिवर्तन होते हैं। परंपराओं के अनुसार सूय्र तिल तिल आगे बढ़ता है इसलिये इस दिन तिल के विभ्सिन्न मिष्ठान बनाये जाते हैं ष्षीत ऋतु की विदाई अर्थात् तिल गुड़ ष्षीत ऋतु के खाद्य पद्धार्थ खाओ और दान कर पुण्यलाभ करेा। 

मकर संक्राति पूरे भारतवर्ष में अलग अलग नाम से मनाया जाता है। दक्षिण भारत में उसे पौगल उत्सव कहते है। नव उर्त्सजित पोंगल चावल का भोग लगाया जाता है व सेवन किया जाता है। नृत्य आदि समारोह से अन्न भंडारण का यह समारोह मनाया जाता है। 

हर की पौड़ी ब्रह्मकुंड पर सूर्य के संक्रमण काल का सर्वाधिक महत्व माना जाता हे।सूर्य के उत्तरायण में प्रवेष और मकर राषि होने पर ये किरणें हरिद्वार में ब्रह्मकुंड में सीधे प्रक्षेपण करती हैं। हरिद्वार के ब्रह्मकुंड की भौगोलिक स्थिति रेखांष व अक्षांष की स्थितियों में इस समय अनुकूल बैठती है

उत्तर प्रदेश- दान पर्व है। उत्तर भारत में खिचड़ी का विषेष महत्व होता है। खिचड़ी ही खाई जाती है व दान की जाती है इस दिन 14 वस्तुएंे दान कर अगले जन्म के लिये संचयित किया जाता है। अक्षय पुण्य का लाभ मिलता है। इस दिन इलाहाबाद में संगम पर एक माह तक लगने वाले माह मेले की शुरूआत होती है ।उत्तर भारत में गंगा यमुना के तटों पर बसे कस्बे और षहरों में मलों का आयोजन होता हे


 पंजाब में यह लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है। अग्नि की परिक्रमा के साथ नवजीवन को षुभ कामनाऐं देते हुए अग्नि को तिल गुड़ मूंगफली मक्का आदि का भोग लगाते है।‘ दे मा लोहड़ी तेरी जीवे जोड़ी ’बोलते हुए परिक्रमा लगाते है। प्रचलित कथा के अनुसार कंस ने भगवान् कृष्ण को मारने के लिये लोहित नामक राक्षसी को भेजा था,सिंधी समाज भी मकर संक्रान्ति के एक दिन पहले लाल लोही का पव्र मनाता है ।

राजस्थान मे इसे पंतग उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस चौदह प्रकार के पकवान ब्राह्मणों और सुहागिन स्त्रियों को बाँटा जाता है। 

महाराष्ट्र मे यह पर्व भोगी, संक्राति करिदिन के रूप से मनाया जाता है। यह तीन भाग में मनाया जाता है। संक्राति से एक दिन पहले खिचड़ी व गुड़ की रोटी का सेवन किया जाता है। संक्राति के दिन सभी लोग एक दूसरे को तिल गुड बाँटते है साथ ही साथ बोलते जाते है तिल-गुड़ धा आणि गोड गोड करिदिन अर्थात् संक्राति के बाद वाले दिन घिरडे ताऐं का सेवन किया जाता है। इसे तिलगुल भी कहते है। सुहागन महिलाऐं एक स्थान पर एकत्रित होकर हल्दी कुमकुम की रस्म करती हैं और उपहार स्वरूप बर्तन भेंट करती है।

मध्यप्रदेष में यह पर्व मकर संक्राति के रूप में मनाया जाता है और तिल गुड़ लड्डू कपास नमक बर्तन आदि दान मंदिरों और ब्राह्मणों को दिया जाता है। 

केरल में इसे ओणम नाम से जाना जाता है। ओणम में घरों मे रंगोली बनाई जाती है तिल घी कंबल आदि दान की जाती है। 

असम मे बिहू के रूप में यह त्यौहार मनाय जाता है। पानी में तिल डालकर स्नान करने के प्ष्चात् तिल दान करने का प्रचलन है। भूने अनाजों से वयंजन तैयार करती है। जिसे कराई कहा जाता है। 

दान का व तिल के दान का महत्व संपूर्ण भारतवर्ष में किसी न किसी रूप से अवष्य किया जाता है और इन दिनों षीत ऋतु अपने पूर्ण रूप में होती है। तिल की तासीर गर्म है स्नान में तिल के तेल का प्रयोग किया जाता है तिल त्वचा के कीटाणाओं को समाप्त कर तैलीयता प्रदान करता है। 

बंगाल में इस दिन गंगा सागर का मेला आयोजित होता है सारे तीरथ कर बार बार गंगा सागर एक बार । एक बार गंगा सागर में स्नान करने से जाने अनजाने सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।गंगा सागर पहले साल में एक बार ही जाया जा सकता था क्योंकि मकर संक्रांति के दिन यहद्वीप समुद्र में उभरता था फिर सागर में जाता था।

केरल में सबरीमाला मंदिर में अयप्पा भगवान की पूजा की जाती हैं। इसे विलाक्कू महोत्सव कहते है। सुदूर पर्वतों पर एक दिव्य आभा मकर संक्राति ज्योति का दर्षन करने आती है। इसे ओणम भी कहते है। 

तमिलनाडू में मकर संक्राति दीपावली के समान धूमधाम से मनाई जाती है इसे चार दिन गन्ने की फसल कटने की खुषी के रूप में पोंग’ पर्व मना कर करते है। इसे पांेगल कहते हैं। 

दक्षिण भारत में मकर संक्राति पर एक विषाल मेले का आयोजन किया जाता है। मधु कैटभ          असुरों का विनाष करके मंदार पर्वत के नीचे स्थित सरोवर में विष्णु भगवान ने स्नान किया था। इस दिन इस सरोवर में स्नान करने से पाप नष्ट होते हैं कुरूक्षेत्र में भी स्नान किया जाता हैं। 

हरियाणा और पंजाब में इसे तिलचौली कहा जाता है। संध्या काल होते ही अग्नि की पूजा करते हैं और तिल गुड़ चावल आदि की आहुति दी जाती है। इसे माधी भी कहते है।

कष्मीर घाटी में षिष्ुार संक्रात कहते है। 

आन्ध्रप्रदेष में पेंड़ा पनडुगा कहते हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में घुघुती कहते है। घुघुती प्रवासी पक्षियों को वापस बुलाने की प्रथा के रूप में मनाते है। प्रतीकात्मक रूप में काल कोऐ को इंगित करते है और आटे को गुड़ मिलाकर तरह तरह के आकार दे रोटी तलते है। 

मध्यप्रदेष में संनकुआ नामक स्थान पर इस उत्सव को मनाते है और सिंध नदी में स्नान का विषेष महत्व है। सिंधू नदी को अडसठ तीर्थो का भानजा रूप माना जाता है इसलिए इसका महत्व बढ़ जाता है। 

बिहार में यह पर्व पवित्र नदियों में स्नानकर दाल चावल तिल गुड़ धान का दान किया जाता है उड़द की दाल की खिचड़ी सब्जियॉं डाल कर बनाई और परिजनों को खिलाई जाती है। 

कर्नाटक में इसे येल्लू बेला कहा जाता है पवित्र नदी में स्नान कर सूर्य की आराधना करके परिजनों को एल्लू बेला कहकर तिल के पद्धार्थ बाँटे जाते है। इस दिन अपने मवेषियों को सजाते हैं (किच्चू,हैसोधू) एक प्रकार का अनुष् ठान करते है। 

गुजरात में यह पर्व दो दिन मनाया जाता है। पहले दिन उत्तरायण और दूसरे दिन बासी उत्तरायण मनाते है। गोवा में मकर संक्राति का पर्व महाराष्ट्र की तरह ही मनाते है। 

गुरू गोरख नाथ की तपस्थली गोरखनाथ मंदिर में हर वर्ष मकर संक्रान्ति के अवसर पर खिचड़ी मेला आयोजित किया जाता हे ।


पंजाब में लोहड़ी के रूप मे मनाया जाता है। अग्नि की परिक्रमा करते हुए तिल, गुड़, चावल और भुने मक्कांे की आहुति दी जाती है। लोग आपस में गजक और रेवड़िया बाँटते है। नई बहू, नये बच्चे के लिए लोहड़ी धूमधाम से मनाते है ।

इस दिन खिचड़ी  दान का महत्व है। 

महाराष्ट्र- विवाहित महिलाएं एक दूसरे के घर जाकर हल्दी व रोली का टीका लगाती है, गोद में सुहाग का सामान व ताजा फल-बेर डाले जाते हैं तथा तिल, गुड़ देते हैं और कहते है ‘तिल गुड़ ध्या अणि गोड़ गोड़ बोल’ अर्थात् तिल गुड़ लो और मीठा मीठा बोलो ।

बंगाल- उत्तर प्रदेश की तरह गंगा सागर में विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। तिल का दान किया जाता है। ‘सारे तीरथ  बार बार गंगा सागर एक बार ’

तमिलनाडू-  पोंगल के रूप में चार दिन मनाया जाता है। पहला दिन- भोगी पोंगल । इस दिन कूड़ा-कड़कट इकट्ठा करके जलाया जाता है। दूसरा दिन - सूर्य पोंगल, इस दिन लक्ष्मी की पूजा की जाती है। तीसरा दिन- गटटू पोंगल इस दिन पशुधन की पूजा की जाती है।                  चौथा- कन्या पोंगल, इस दिन स्नान के पश्चात् मिट्टी के बर्तन में खीर बनाने का रिवाज है। खीर का सूर्य को भोग लगाने के बाद प्रसाद रूप में ग्रहण किया जाता है । इस दिन बेटी-जंवाई को निमंत्रित किया जाता है। 

असम - यह माघबिहू या मांगाली  बिहू के नाम से मनाया जाता है। बिहू एक कृषि प्रधान पर्व है। नई फसल लहलहाने का उत्साह 

राजस्थान में सुहागन सास को बायना देकर आर्शीवाद लेती है। चौदह सौभाग्य सूचक वस्तुओं का पूजन कर उनका  दान किया जाता है। 

मान्यता है। इस दिन सूर्य भगवान अपने पुत्र शनि से मिलने उसके घर जाते है। शनि देव मकर राशि के स्वामी है । अतः इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। इसी दिन गंगा जी भगीरथ के पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने देह त्यागने के लिये मकर संक्राति के दिन का चुनाव किया था ।

इस दिन का दान सौ गुना बढ़कर पुनः प्राप्त होता है। पतंग बाजी भी की जाती है। गुजरात में विशेष रूप से प्रकाश से नई ऊर्जा देने के लिये सूर्य देव को धन्यवाद देने का यही तरीका है। 

राम इक दिन पतंग उड़ाई

इंद्रलोक मंे पहुँचा जाई  

मीठे गुड़ में मिल गया तिल 

उड़ी पतंग और खिल गए दिल

जीवन में बनी है सुख और शान्ति 

मुबारक हो आपको मकर संक्राति





डा॰ शशि गोयल                 

 सप्तऋषि अपार्टमेंट     

 जी -9 ब्लॉक -3  सैक्टर 16 बी


Friday, 10 January 2025

bada kaun

 बड़ा कौन -




नभ में अपने बड़े बड़े पंख फैलाये उड़ते बादल ने पर्वत को तुच्छ नजरों से देख अट्ठहास करने लगा। ‘‘पर्वत तू अपने को बड़ा विषाल समझता है मैं देख तुमसे कितने नीचे उड़ रहा हूंॅ ! और तू कुछ नहीं , हिल भी नहीं सकता है। हां हां ! देख मैं सूरज ढक लेता हूंॅ ।’

‘अरे जा निर्लज्ज बहुत न इतरा,’ पर्वत ने दम्भ से कहा ,‘ मेरा मुकाबला कोई नहीं कर सकता तू तो क्या चीज है जरा देर में ही थकेगा और रो पड़ेगा,पष्थ्वी पर मानव तले रौंदा जायेगा । मेरे से जरा छू भी  जायेग तो कण कण में बिखर जायेगा’ उसकी बात सुन रहे झरने की खिल खिल हंसी निकल गई । दोनो ने आंखे तरेरी ‘तू इतने 

नीचे बहने वाला झरना हमारी हंसी उड़ाता है तेरी यह मजाल । तू किस खेत की मूली है।’

 झरना फिर खिलखिलाया,‘ मैं वह चीज हूं जिसने बादल बनाया और पर्वत की बड़ी बड़ी चट्टानों को यूं ही   बहा ले जाता हूं ‘‘ यह कह कूद फिर आगे बढ़ गया। 


Wednesday, 8 January 2025

kirch kirch baten

 मैं जो करना चाहता था नहीं कर पाया अर्थात् हार मान ली कि अब वे कभी नहीं जीतेंगे ।


हमारे नेता पर कोई उंगली नहीं उठा सकता वे भ्रष्ट नहीं हैं इसका मतलब है बाकी सब भ्रष्ट हैं मानते हैं ।

लव खामोष हैं जिनके उनकी आंखों में इबारत होती है।


युद्ध में ष्षहीद को एक मां बेटा खोती है बेटा एक परिवार और परिवार घरती खो देता है जिसके लिये युद्ध हो रहा होता है ।

पत्र जिंदगी में आधी मुलाकात होते हैं उनसे जिंदगी झांकती है पत्रों से इतिहास झांकता है तत्कालीन समाज का चित्र मिलता है और विगत स्मृतियां तैर आती हैं


Friday, 27 December 2024

manavta ke par pul

 बेशक कुछ वैज्ञानिक खोजें जिन्हें पवित्र बाइबल के शब्दों के विपरीत माना जाता था उन्हें कैथोलिक चर्च से भारी प्रतिरोध का सामना करना पड़ाए लेकिन इनमें से कई मामलों में भीए खोजों का श्रेय जिन व्यक्तियों को दिया गयाए वे स्वयं पादरी थे। उदाहरण के लिएए यह निकोलस कोपरनिकस . जो सौर मंडल के अपने हेलियोसेंट्रिक मॉडल के लिए प्रसिद्ध है . और ग्रेगर मेंडल . दोनों भिक्षुओं के लिए सच हैए जिन्होंने जैविक जीवों में वंशानुगत लक्षणों को निर्धारित करने में जीन की भूमिका को उजागर किया था। एक अधिक आधुनिक उदाहरण के रूप में प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी अल्बर्ट आइंस्टीन हालांकि पारंपरिक रूप से धार्मिक व्यक्ति नहीं हैं ने एक बार टिप्पणी की थी,  स्पिनोज़ा के ईश्वर में विश्वास करता हूं जो अस्तित्व के व्यवस्थित सामंजस्य में खुद को प्रकट करता है न कि ऐसे ईश्वर में जो खुद को भाग्य और  मनुष्य के कार्यों से चिंतित करता है ।9 आइंस्टीन की आध्यात्मिकता की भावना इस प्रकार दुनिया के बारे में उनके वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जुड़ी हुई थीए जो उतने ही विस्मय और आश्चर्य से भरी हुई थी जितना कि उन्होंने ब्रह्मांड में नियमबद्धता का अनुभव किया था।


 विज्ञान और धर्म के बीच स्वाभाविक रूप से कुछ भी विरोधाभासी नहीं हैए क्योंकि प्रत्येक अलग.अलग तरीकों से ब्रह्मांड के नियमों का पालन करता है। धार्मिक संस्थानों की ओर से वैज्ञानिक खोज के खिलाफ होने वाले लगभग सभी विरोधों का वास्तविक धर्मशास्त्र या सत्य की खोज की तुलना में राजनीति और सत्ता से अधिक लेना.देना है।

 हम एक प्रजाति के रूप में यह समझने लगे हैं कि ब्रह्मांड के अव्यवस्थित अंधेरे में फैली आकाशगंगाएँ, तारे, ग्रह और जीवन रूप . अतीत और भविष्य के साथ . सभी उनके जीवन का निर्धारण करने वाले कानूनों के एक सुसंगत सेट द्वारा शासित होते हैं। चक्र और एक दूसरे के साथ उनके संबंध। और पूरे इतिहास में, धर्मों और अन्य विश्वास प्रणालियों ने आश्चर्य जताया है कि इन कानूनों के अस्तित्व के लिए कौन या क्या जिम्मेदार है, साथ ही ब्रह्मांड के कौन से कानून हमारे अपने जीवन के लिए सबसे अधिक प्रासंगिक हैं। भगवद गीता में, भगवान कृष्णए,जो भगवान विष्णु के अवतार हैं, नायक अर्जुन से कहते हैं कि,श्मेरे मार्गदर्शन में  प्रकृति सभी प्राणियों सभी जीवित या निर्जीव चीजों को सामने लाती है और पूरे ब्रह्मांड को गति में स्थापित करती है। दूसरे शब्दों में हम प्रकृति और ब्रह्मांड में जो क्रम देखते हैं उसका पता विष्णु से लगाया जा सकता है जो ईश्वर का एक प्रतिनिधित्व करते हैं। हिंदू धर्म में भारत के मूल निवासी अन्य धर्मों ;जैसे बौद्ध धर्म और जैन धर्मद्ध के साथ ब्रह्मांड में व्यवस्था की अवधारणा को र्मश् कहा जाता है। जैसा कि रॉबर्ट राइट बताते हैं  यहां तक कि प्रकृतिवादी  श्धर्मनिरपेक्षश् बौद्ध धर्म भीए मैं तर्क देता हूंए एक प्रकार का श्अनदेखा आदेशश् प्रस्तुत करता है। जैसे.जैसे आत्मज्ञान का उदय होने लगता हैए वास्तविकताए जो पूरी तरह से कटी.फटी लग रही थीए एक अंतर्निहित निरंतरताए एक प्रकार का अंतर्संबंध का बुनियादी ढाँचाए धारण करने लगती है। कुछ लोग इसे शून्यता कहते हैंए अन्य इसे एकता कहते हैंए लेकिन सभी इस बात से सहमत हैं कि यह चित्र मिलने से पहले की तुलना में कम खंडित दिखता है।11

             चीन के धर्मों की ओर मुड़ते हुएए कन्फ्यूशीवाद और ताओवाद दोनों ने सामाजिक व्यवस्था के बीच दरार को सुधारने की कोशिश की और प्रकृति की सार्वभौमिक व्यवस्थाए जिससे हमने एक प्रजाति के रूप में खुद को अलग कर लिया था। हालाँकि दोनों धर्म अलग.अलग तरीके से इस सामान्य मुद्दे पर विचार करते हैं।


Tuesday, 24 December 2024

Manavta ke par pul 10

 विज्ञान और धर्म के बीच स्वाभाविक रूप से कुछ भी विरोधाभासी नहीं हैए क्योंकि प्रत्येक अलग.अलग तरीकों से ब्रह्मांड के नियमों का पालन करता है। धार्मिक संस्थानों की ओर से वैज्ञानिक खोज के खिलाफ होने वाले लगभग सभी विरोधों का वास्तविक धर्मशास्त्र या सत्य की खोज की तुलना में राजनीति और सत्ता से अधिक लेना.देना है।

 हम एक प्रजाति के रूप में यह समझने लगे हैं कि ब्रह्मांड के अव्यवस्थित अंधेरे में फैली आकाशगंगाएँए तारेए ग्रह और जीवन रूप . अतीत और भविष्य के साथ . सभी उनके जीवन का निर्धारण करने वाले कानूनों के एक सुसंगत सेट द्वारा शासित होते हैं। चक्र और एक दूसरे के साथ उनके संबंध। और पूरे इतिहास मेंए धर्मों और अन्य विश्वास प्रणालियों ने आश्चर्य जताया है कि इन कानूनों के अस्तित्व के लिए कौन या क्या जिम्मेदार हैए साथ ही ब्रह्मांड के कौन से कानून हमारे अपने जीवन के लिए सबसे अधिक प्रासंगिक हैं। भगवद गीता मेंए भगवान कृष्णए जो भगवान विष्णु के अवतार हैंए नायक अर्जुन से कहते हैं किए श्मेरे मार्गदर्शन मेंए प्रकृति सभी प्राणियोंए सभी जीवित या निर्जीव चीजों को सामने लाती हैए और पूरे 

ब्रह्मांड को गति में स्थापित करती है।श्  दूसरे शब्दों मेंए हम प्रकृति और ब्रह्मांड में जो क्रम देखते हैंए उसका पता विष्णु से लगाया जा सकता हैए जो ईश्वर का एक प्रतिनिधित्व करते हैं। हिंदू धर्म मेंए भारत के मूल निवासी अन्य धर्मों ;जैसे बौद्ध धर्म और जैन धर्मद्ध के साथए ब्रह्मांड में व्यवस्था की अवधारणा को श्धर्मश् कहा जाता है। जैसा कि रॉबर्ट राइट बताते हैंरू यहां तक कि प्रकृतिवादीए श्धर्मनिरपेक्षश् बौद्ध धर्म भीए मैं तर्क देता हूंए एक प्रकार का श्अनदेखा आदेशश् प्रस्तुत करता है। जैसे.जैसे आत्मज्ञान का उदय होने लगता हैए वास्तविकताए जो पूरी तरह से कटी.फटी लग रही थीए एक अंतर्निहित निरंतरताए एक प्रकार का अंतर्संबंध का बुनियादी ढाँचाए धारण करने लगती है। कुछ लोग इसे शून्यता कहते हैंए अन्य इसे एकता कहते हैंए लेकिन सभी इस बात से सहमत हैं कि यह चित्र मिलने से पहले की तुलना में कम खंडित दिखता है।

             चीन के धर्मों की ओर मुड़ते हुएए कन्फ्यूशीवाद और ताओवाद दोनों ने सामाजिक व्यवस्था के बीच दरार को सुधारने की कोशिश की और प्रकृति की सार्वभौमिक व्यवस्थाए जिससे हमनेए एक प्रजाति के रूप मेंए खुद को अलग कर लिया था। हालाँकिए दोनों धर्म अलग.अलग तरीके से इस सामान्य मुद्दे पर विचार करते हैं।

एनालेक्ट्स मेंए कन्फ्यूशियस ने सद्भाव या व्यवस्था जैसी किसी चीज़ को दर्शाने के लिए चीनी शब्द श्वेनश् का उपयोग किया है। यहां बताया गया है कि अनुवादक डीण्सीण् लाउ इस शब्द का अर्थ कैसे समझाते हैंरू सबसे पहलेए वेन एक सुंदर पैटर्न का प्रतीक है। उदाहरण के लिएए तारों का पैटर्न स्वर्ग की वेन हैए और बाघ की त्वचा का पैटर्न उसकी वेन है। मनुष्य पर लागू होने परए यह उन सुंदर गुणों को संदर्भित करता है जो उसने शिक्षा के माध्यम से हासिल किए हैं।☺


Monday, 23 December 2024

manavta ke par pul 9

 

ब्रह्माण्ड में व्यवस्था की सबसे बुनियादी विशेषताओं में से एक, जिसे सभी धर्मों में पहचाना गया है, मानव संसार (पृथ्वी) और देवताओं का दिव्य संसार (स्वर्ग) के बीच विभाजन है । हिंदू धर्म में, ऋग्वेद में ब्रह्मांड के इन दो हिस्सों को अंडे के दो हिस्सों के रूप में वर्णित किया गया है, जिसके बीच में जर्दी के रूप में सूर्य है। यह उदाहरण शुरू करने के लिए एक अच्छी जगह है क्योंकि यह सभी धर्मों में साझा किए गए कई बुनियादी तत्वों को पुन: पेश करता है: स्वर्ग और पृथ्वी दो संतुलित   हिस्सों के रूप में, इन दोनों के बीच एक तीसरा अंतरालीय स्थान और सूर्य जैसे खगोलीय पिंडों पर जोर।                                       पश्चिम में लोग पूरक जोड़ों द्वारा शासित एक व्यवस्थित ब्रह्मांड के उदाहरण के रूप में यहूदी-ईसाई परंपराओं से उत्पत्ति की कहानी से अधिक परिचित हो सकते हैं।

परमेश्वर ने कहा, दिन को रात से अलग करने के लिये आकाश के अन्तर में ज्योतियां हों; और वे ऋतुओं, दिनों, और वर्षों को चिन्हित करने के चिन्ह बनें; और वे आकाश के अन्तर में पृय्वी पर प्रकाश देनेवाली ज्योति ठहरें; और वैसा ही हो गया। भगवान ने दो महान रोशनी बनाई: दिन पर शासन करने के लिए

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बड़ी रोशनी, और रात पर शासन करने के लिए छोटी रोशनी। उन्होंने तारे भी बनाये। परमेश्वर ने उन्हें पृथ्वी पर प्रकाश देने, और दिन और रात पर प्रभुता करने, और प्रकाश को अन्धियारे से अलग करने के लिये आकाश के अन्तर में स्थापित किया। भगवान ने देखा कि यह अच्छा था।'5

एक बार फिर, ब्रह्मांड का मूल क्रम संतुलित f}fo/krk में से एक है। ऐसे जोड़े हैं, जैसे स्वर्ग और पृथ्वी, प्रकाश और अंधकार, दिन और रात और तारे (जिनमें से सूर्य भी एक है) दिन और रात के बीच मध्यस्थता करते हैं। आदेशित सिद्धांतों के माध्यम से ब्रह्मांड का निर्माण करने वाले ईश्वर के इसी विचार को कुरान में फिर से लिया गया है:

 यह वह है जिसने सूर्य को एक चमकदार महिमा और चंद्रमा को प्रकाश (सुंदरता) बनाया, और इसके लिए voLFkkvksa esa foHkDr fd;k; ताकि तुम वर्षों की संख्या और (समय की) गिनती जान सको। अब भगवान ने इसे बनाया है लेकिन सच्चाई और धार्मिकता से।(इस प्रकार) वह अपने संकेतों को विस्तार से समझाता है, उन लोगों के लिए जो समझते हैं। 6

 4 वेंडी डोनिगर, हिंदू धर्म, द नॉर्टन एंथोलॉजी ऑफ वर्ल्ड रिलीजन: वॉल्यूम। 1. एड. जैक माइल्स (न्यूयॉर्क: डब्ल्यू.डब्ल्यू. नॉर्टन एंड कंपनी, 2015), 235. 5 जनरल 1:14-18 (वर्ल्ड इंग्लिश बाइबिल)। 6 कुरान, 10:5 (यूसुफ अली)।

यहां, कहा जाता है कि भगवान ने हमारा मार्गदर्शन करने और हमें हमारे अराजक वातावरण में समझने और जीवित रहने में मदद करने के साथ-साथ भगवान को समझने के लिए आदेश स्थापित किया है। विस्मय की भावनाओं के माध्यम से स्वयं। यही कारण है कि, अधिकांश पश्चिमी सभ्यता में, गणित और विज्ञान धर्म के साथ-साथ चलते रहे। गणित और विज्ञान को पवित्र प्रयासों के रूप में देखा जाता था क्योंकि वे ऐसे उपकरण थे जो हमें ईश्वर द्वारा हमारे लिए छोड़े गए सुरागों को समझने की अनुमति देते थे। ये सुराग हमें ब्रह्मांड के रहस्यों को समझने में मदद करने के लिए थे। नया नियम सिखाता है कि 'दुनिया के निर्माण के बाद से उसकी अदृश्य चीजें स्पष्ट रूप से देखी जाती हैं, जो बनाई गई चीजों के माध्यम से देखी जाती हैं, यहां तक ​​कि उसकी शाश्वत शक्ति और दिव्यता भी, ताकि वे बिना किसी बहाने के हो सकें'7। इसी तरह, बहाई धर्म के पैगंबर बहाउल्लाह ने कहा कि '[प्रकृति की] अभिव्यक्तियाँ अलग-अलग कारणों से विविध हैं, और इस विविधता में विवेकशील लोगों के लिए संकेत हैं। प्रकृति ईश्वर की इच्छा है और आकस्मिक दुनिया में और उसके माध्यम से इसकी अभिव्यक्ति है।'8 क्योंकि ब्रह्मांड में व्यवस्था को ईश्वर की रचना के रूप में देखा जाता है, प्रकृति के भौतिक नियमों की खोज की खोज को स्वयं ईश्वर को बेहतर ढंग से समझने की खोज के रूप में देखा जा सकता है।