चमार कौन ?
महाराजा जनक का दरबार लगा था । ष्शास्त्रों के जानने वाले अनेकों विद्वान एकत्रित थे । महाराजा का दरबार था इसलिये ब्राह्मण वर्ग भी उपस्थित था । अनकों मुनि भी आकर आसन ग्रहण कर रहे थे ।तभी रिषिकुमार अष्टावक्र जी ने प्रवेष किया । अष्टावक्र जी का सारा शरीर ही टेढ़ा था। हाथ पैर पीठ सब टेढ़े थे। चलने में भी वक्रता थी। कहीं पर पैर रखते कहीं पड़ता था उनकी चाल ढ़ाल भाव भंगिमा को देखकर सभी उपस्थित हॅंस पड़े । उन्हें अपने ऊपर हंसते देख अष्टावक्र कुपित न होकर स्वयं भी हंस दिये । यद्यपि हंसी महाराज जनक को भी आ रही थी लेकिन वो हंसी दाब गये क्योंकि सम्माननीय अतिथि के ऊपर हंसना एक राजा को शोभा नहीं देता ।महाराजा जनक ने खड़े होकर उनका सम्मान किया व स्थान ग्रहण करने के लिये कहा। हंसते हुए अष्टावक्र जी ने स्थान ग्रहण किया तब महाराजा जनक बोले ‘ भगवान्! आप क्रोधित न हों तो एक बात कहॅूं?’
‘ पूछो,’ अश्टावक्र ने वक्र भवें उठा कर कहा ।
‘ भगवन्! आप क्यों हंस रहे हैं ?’
पलटकर अष्टावक्र जी बोले,‘पहले बताइये ,ये सब क्यों हंस रहे हैं ?’
महाराज अपने मुॅह से कैसे कहते? तभी एक ब्राह्मण बोला,‘ रिषि कुमार ! हम तो तुम्हारी यह बेढ़ंगी टेढ़ी मेढ़ी आकृति देख कर हंस रहे हैं ।’
अष्टावक्रजी बोले ,’ राजन् बहुत दुःख हुआ यह देखकर कि यहॉं विद्वान तो आये नहीं । मैं तो सोच रहा था कि महाराजा जनक का दरबार है विद्वजन आयेंगे उनकी संगति का लाभ उठाउंगा पर यहॉं तो सब चमार एकत्रित हुए हैं ,इसलिये हंस रहा हूॅं ।’
‘चमार ! महाराज दूर दूर से विद्वान एकत्रित हुए हैं, आप उन्हें चमार कैसे कह रहे हैं ?’ जनक ने हैरानी से पूछा
‘महाराज व्यक्ति विषेष कर्म से जाना जाता है । जो चमड़े हड्डियों को देखें व जाने पहचानें वह चमार होता है न ?’
सुनते ही सभी विद्वानों के मस्तक झुक गये । उन्होंने अपनी भूल के लिये रिषि कुमार से माफी मांग ली ।