Wednesday, 13 August 2025

chamar kaun

 चमार कौन ?


    महाराजा जनक का दरबार लगा था । ष्शास्त्रों के जानने वाले अनेकों विद्वान एकत्रित थे । महाराजा का दरबार था इसलिये  ब्राह्मण वर्ग भी उपस्थित था । अनकों मुनि भी आकर आसन ग्रहण कर रहे थे ।तभी रिषिकुमार अष्टावक्र जी ने प्रवेष किया । अष्टावक्र जी का सारा शरीर ही टेढ़ा था। हाथ पैर पीठ सब टेढ़े थे। चलने में भी वक्रता थी। कहीं  पर पैर रखते कहीं पड़ता था उनकी चाल ढ़ाल भाव भंगिमा को देखकर सभी उपस्थित हॅंस पड़े । उन्हें अपने ऊपर हंसते देख अष्टावक्र कुपित न होकर  स्वयं  भी हंस दिये । यद्यपि हंसी महाराज जनक को  भी आ रही थी लेकिन वो हंसी  दाब गये क्योंकि सम्माननीय अतिथि के ऊपर हंसना एक राजा को शोभा नहीं देता ।महाराजा जनक ने  खड़े होकर उनका सम्मान किया व स्थान ग्रहण करने के लिये कहा। हंसते हुए अष्टावक्र जी ने स्थान ग्रहण किया तब महाराजा जनक बोले ‘ भगवान्! आप क्रोधित न हों तो एक बात कहॅूं?’

‘ पूछो,’ अश्टावक्र ने वक्र भवें उठा कर कहा  ।

 ‘ भगवन्! आप क्यों हंस रहे हैं ?’

पलटकर अष्टावक्र जी बोले,‘पहले बताइये ,ये सब क्यों हंस रहे हैं ?’

 महाराज अपने मुॅह से कैसे कहते? तभी एक ब्राह्मण बोला,‘ रिषि कुमार ! हम तो तुम्हारी यह बेढ़ंगी टेढ़ी मेढ़ी आकृति देख कर हंस  रहे हैं ।’

अष्टावक्रजी बोले ,’ राजन् बहुत दुःख हुआ यह देखकर कि यहॉं विद्वान तो आये नहीं । मैं तो  सोच रहा था कि महाराजा  जनक का दरबार है विद्वजन  आयेंगे उनकी संगति का लाभ उठाउंगा पर यहॉं तो सब चमार एकत्रित हुए हैं ,इसलिये हंस रहा हूॅं ।’

‘चमार ! महाराज दूर दूर से विद्वान एकत्रित हुए हैं, आप उन्हें चमार  कैसे कह रहे हैं ?’ जनक ने हैरानी से  पूछा

‘महाराज व्यक्ति  विषेष कर्म से  जाना जाता है । जो  चमड़े हड्डियों को देखें व जाने  पहचानें वह चमार होता है न ?’

सुनते ही सभी विद्वानों के मस्तक झुक गये । उन्होंने अपनी भूल के लिये रिषि कुमार से  माफी मांग  ली ।


Sunday, 10 August 2025

Kailash mansarover yatra 22

 विदेषों में और आनार्य संस्कुतियों में भी षिव के स्वरूपों का वर्णन मिलता है । ईजिप्ट में स्फिंक्स को वहॉं के विद्वानों ने षिव के नन्दी रूप में माना है । काउन्ट जान्स जन्ना ने ईजिप्ट में नील नदी के तट पर षिवलिंग ओर षिव मंदिरों की भरमार का वर्णन किया हे ‘ वहॉं ईजिप्ट में नील नदी के किनारे  अमोन के मंदिरों की भरमार उसी प्रकार है जिसप्रकार भारत मेंगंगा नदी के किनारे षिव के मंदिरों की ’। रोमन संस्कृति में इटली के ऊपर आल्प्स पर्वत मालाओं को कैलाष का रूपान्तर स्वीकारा है जहॉं से इन्द्रादि देवता वज्र के रूप में बिजलियॉं गिराते हैं ।सेरालुम गोम्पा से करीब दो किलोमीटर आगे दल की एक गाड़ी में कुछ परेषानी आ गई सब गाड़ियॉं रुक गईं सब यात्री उतर उतर के दृष्यों का आनंद लेने लगे । वहीं पर एक व्यक्ति ने बताया सेरालुम गोम्पा के सामने  मानसरोवर के किनारे की मिट्टी बहुत पवित्र मानी जाती है । वहॉं की मिट्टी पूजा में रखी जाती है वह मिट्टी भी सुनहली है उसमें सोना पाया जाता है । वही सबसे पवित्र स्थान माना जाता है । अब क्या हो सकता था पहले पता ही नहीं चला नहीं तो  जरा सी मिट्टी वहॉं की  ले आते  बहुत दुःख हुआ  जरा सी जानकारी न होने से  एक महत्वपूर्ण सूत्र छूट गया । किसी भी यात्रा पर जाने से पूर्व पूर्ण जानकारी लेना आवष्यक होती है तभी पूर्ण आनंद लिया जा सकता है ।

मान सरोवर के जल पर एक दो छोटी चिड़िया और पहाड़ी कौवे उड़ते दिख रहे थे हंस दूर दूर तक नहीं दिखे थे । एक मोड़ आया और दो हंस पानी में किलोल करते दिखाई दिये  कभी पंख फड़फड़ाकर  पैरों पर पानी में खड़े हो जाते फिर तैरने लगते । पहले  बार बार झपकी आरही थी हंस दिखाई देते ही ऑंख खुल गई कुछ दूर पर फिर चार हंस दिखाई दिये  दूध से उज्वल लम्बी गर्दन पीली चोंच  अर्थात् मान सरोवर में हंस हैं यह निष्चित है ।

राक्षस ताल मान सरोवर से  तीस किलोमीटर की दूरी पर है राक्षस ताल और मानसरोवर दोनों मनुष्य के दो नेत्रों के समान हैं बीच में नासिका के समान उठी हुई पर्वतीय भूमि है जो दोनों को पृथक करती है विषाल पर कुछ लम्बा सा कहते हैं  आकाष से देखने पर लगता है कोई बॉंहे फैलाये खड़ा है । राक्षस ताल का जल भी निर्मल स्वच्छ लग रहा था पर उस पर हल्की  कालिमा सी थी उसे असुर ताल भी कहा जाता है उसके जल का कोई आचमन भी नहीं करता है न नहाता है ।

 राक्षस ताल अर्थात रावण का ताल । यहीं पर लंकाधिपति रावण ने घोर तपस्या की षिवजी को  प्रसन्नकरने के लिये एक एक कर अपने नौ सिर चढ़ा दिये तो षिवजी   उसकी भक्ति देख प्रसन्न हो उठे । और बोले ,‘राक्षस राज वर मांगो ’ रावण ने कहा  मुझे अतुल बल दें और मेरे मस्तक पूर्ववत् हो जायें ’ भगवान् ष्शंकर ने उसकी अभिलाषा पूर्ण की इस वर की प्राप्ति से देवगण और ़ऋषिगण बहुत दुःखी हुए । उन्होंने नारद जी से पूछा ‘देवर्षि ! इस दुष्ट रावण से हम लोगों की रक्षा किस प्रकार से हो?’ नारद जी ने कहा ‘ आप लोग जायें मैं इसका उपाय करता हॅूं  ।’ तब जिस मार्ग से रावण जा रहा था, उसी मार्ग से वीणा बजाते नारद जी उपस्थित हो गये  और बोले ,‘ राक्षसराज! तुम धन्य हो तुम्हें देखकर असीम प्रसन्नता हो रही है। तुम कहॉं से आ रहे हो और बहुत प्रसन्न दीख रहे हो  ?’ रावण ने कहा ऋषिवर ! मैंने आराधना करके षिवजी को प्रसन्न किया है।’ रावण ने सभी वृतान्त ऋषि के सम्मुख प्रस्तुत कर दिया। उसे सुनकर नारद जी ने कहा ,‘ राक्षस राज षिव तो उन्मत्त हैं , तुम मेरे प्रिय षिष्य हो इसलिये कह रहा हॅूं तुम उन पर विष्वास मत करो  और लौटकर उनके दिये वरदान को प्रमाणित करने के लिये कैलाष को उठाओ । यदि तुम उसे उठा लेते हो तो तुम्हारा अब तक का प्रयास सफल माना जायेगा । ’ अभिमानी रावण लौटकर कैलाषपर्वत उठाने लगा। ऐसी स्थिति देखकर षिवजी ने कहा -यह क्या हो रहा है तब पार्वती जी ने हंसते हुए कहा,‘आपका षिष्य आपको गुरु दक्षिणा दे रहा है। जो हो रहा है,वह ठीक ही है यह बलदर्पित अभिमानी रावण का कार्य है ऐसा जानकर षिवजी ने उसे षाप देते हुए कहा‘ अरे दुष्ट ष्शीघ्र तुझे मारने वाला उत्पन्न होगा’ यह सुनकर नारद जी वीणा बजाते चल दिये ।


prem shaswat hai

 प्रेम ष्षाष्वत है

प्रेम एक निष्ठा! एक शब्द! एक अनुभूति ! एक जीवन! एक घड़कन ! एक प्रतीक्षा ! एक राग ! एक सुबह ! एक धुन! एक उड़ान! एक यात्रा! एक संसार! एक कोमल अर्न्तभाव ! एक तड़प! एक प्यास! एक पुकार ! एक चेहरा ! एक बोल ! एक याद ! कितना अपार, कितना अपरूप व्यास , प्रेम के वृत का बंधता.... ही नहीं भाषा में , जीवन में ही कहां बंध पाता है ।

प्रेम ऐसी शाश्वत सनातन चीज है जिसे आप इस तरह से केवल कह सकते हैं बल्कि अनुभव भी कर सकते हैं - प्रेम ब्रह्म है प्रेम परम रूप है प्रेम सत्य है !

 इस तरह भी - प्रेम एक फूल है ,प्रेम परिंदा है, प्रेम गहरी घाटी हैश् प्रेम सर्वोच्च पर्वत है प्रेम निर्झर है । प्रेम नदी है प्रेम समंदर है प्रेम जीवन देता है प्रेम मार डालता है प्रेम बूंद में छिपा सागर है, प्रेम खुला आकाश है प्रेम एक तड़प है। प्रेम सृष्टि पर्यंत है प्रेम अनादि अनंत 


Thursday, 7 August 2025

Astha

 क्रिश्चियन थियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ अमेरिका ;ब्ज्ै।द्ध दुनिया में धर्मशास्त्रियों का सबसे बड़ा पेशेवर समाज है। जून 2022 में आयोजित उनके सबसे हालिया वार्षिक सम्मेलन के दौरानए सम्मेलन का विषय श्कैथोलिक अंतरधार्मिक रूप से सोचनाश् था। मैं फ्रांसिस एक्सण् क्लूनीए ब्ज्ै। के अध्यक्ष.चुने गए 2021.2022 और हार्वर्ड डिविनिटी स्कूल में दिव्यता के पार्कमैन प्रोफेसर के संदेश से उद्धृत करता हूँ।

कोई भी धर्म अपने आप में एक संपूर्ण दुनिया के रूप में मौजूद नहीं है। कोई भी आस्था रखने वाला व्यक्ति अन्य प्राचीन और नई आस्था परंपराओं के लोगों की निकट उपस्थिति के शक्तिशाली प्रभावों से मुक्त नहीं है। कई आस्थाओंए विकसित हो रहे आस्थाओं और प्रतीत होता है कि किसी भी आस्था के लोग आज हमारे पड़ोसीए हमारे सहकर्मी और मित्रए हमारे छात्र हैं। अगर हमें आज पूरी तरह से कैथोलिक होना हैए तो हमें अंतरधार्मिक रूप से कैथोलिक होना चाहिएय धर्मशास्त्रियों के रूप मेंए हमें अंतरधार्मिक रूप से भी सोचना चाहिए।1

मैं इसे और अधिक सुंदर ढंग से नहीं कह सकता था। यदि हम उपरोक्त संदेश में कैथोलिक की जगह हिंदूए मुस्लिमए यहूदीए बौद्ध या कोई अन्य धर्म रखते हैंए तो यह संदेश समान रूप से लागू होता है क्योंकि हम एक वैश्वीकृत दुनिया में रह रहे हैं। दुर्भाग्य सेए हमारी दुनिया धार्मिकए जातीयए सांस्कृतिकए डिजिटल और राजनीतिक विभाजनों से तेजी से विभाजित होती जा रही है। इस पुस्तक का उद्देश्य लोगों को धर्मों में समानताओं के बारे में जागरूक करके धार्मिक विभाजन को कम करने में मदद करना हैए मानवता के एक सामान्य सूत्र को मजबूत करना है जो समय के साथ फैलता हैए इस प्रकार विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच समावेशिता और सहिष्णुता को बढ़ावा देता है। फ्रांसिस एक्सण् क्लूनीए श्थिंकिंग कैथोलिक इंटररिलिजियसलीश् पैम्फलेटए जो 9.12 जून 2022 को अटलांटाए जॉर्जिया में क्रिश्चियन थियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ अमेरिका कन्वेंशन के विषय को रेखांकित करता है।   


Friday, 1 August 2025

English sayings

  

1 For there is no friend like a sister in calm or stormy weather, to cheer one on tedious way to fetch one if one goes astray to lift one if on totters down to strengthen whilst one stands.

2I sought my soul, but my soul I could not see I sought my God but my God eluded me I sought my brother and I found all three .

3 When you smiled you had my undivided attention my love Then you laughed, you had my urge to laugh with you .when you cried you had my urge to hold you . when you said you loved me you had my heart for ever .

        4  Mews  a device for amusing of half of the world with the others half’s trouble 

Thursday, 10 July 2025

shayari

 ऽ झंडे को आदर देने का अर्थ यह नही है कि देश या दश वासी जो कुछ भी करते हैं आप उसका 

अनुमोदन करते हैं इसका एक मात्र तात्पर्य है कि 

स्वतन्त्रता जैसे इश्श्वरीय वरदान के लिये आप कृतज्ञ हैं। 


हम तुम हँसे रोये मिलकर यही तो जिन्दगी है

इस कदर भी न हँसे रोये खुदा को ही हँसना पड़े

खिलौने है हम तुम सभी टूटकर बिखरना ही नियति है 

बिखर जायें न समय से पहले ही यही याद रखना जिन्दगी है।

त्रिफला त्रिकुटा तूतिया पाँचों नमक पंतग

दाँत बज्र सम होत है माजू फल के संग 

कौन कहता है बुढ़ापे में इश्क का सिलसिला नहीं होता 

आम भी रसीला नहीं होता जब तक पिलपिला नहीं होता


थोड़ी शोखी थोड़ी शरारत थोड़ी चतुराई 

या खुदा तुने ये क्या तस्वीर बनाई

जाने कब खत्म हो बाहर की दौड़ें अपनी

जाने किस वक्त हो अंदर के सफर का अगाज 


हर चाभी से खुल जाये दिल ऐसा भी नामुमकिन है 

यह कुछ खास समय खुलता है यह दरवाजा नाम न हो 


बज्मे गम है आवे जगमग नहीं है 

यहाँ किसी से कोई कम नही है


वही रास्ते वही मंजिलें वही मुश्किलें वही मरहेल मगर 

अपने अपने मुकाम पर कभी तुम नहीं कभी हम नहीं


कोई मुस्कराता हुआ जा रहा है

जमाने की रफ्तार का रूख बदलके 


अगरचे लुफ्त से गुजरी है जिन्दगी अब तक 

ये चंद रोज मगर यादगार गुजरे हैं।


पहले सोचा था इस बज्म में आंऊ कैसे 

अब परेशान हूँ कि काश न आया होता


मिली शहर को चिट्ठियाँ नये साल के नाम

लिखी गाँव की धूल ने यादों भरा प्रणाम ☺


Saturday, 28 June 2025

ukti sukti

 वह शासक अत्याचारी है जो अपनी इच्छा के अतिरिक्त कोई नियम नहीं जानता - वाल्तेयर

जब धन जरूरत से ज्यादा हो जाता है तो अपने लिये निकास का मार्ग खोजता है। यों  न निकल पायेगा तो जुए में जायेगा घुड़दौड़ में जायेगा ईंट पत्थर में जायेगा या अय्याशी में जायेगा - प्रेमचंद

साहित्य का मुख्य उद्देश्य सहज भाषा में ऊंचे विचारों और श्रेष्ठ जीवन मूल्यों को अनायास ग्राह्य बनाना है प्रेषण धर्मिता उसका मुख्य गुण है - हजारी प्रसाद द्विवेदी

भय अंधविश्वास का प्रमुख स्त्रोत है और निर्दयता के प्रमुख स्त्रोतों में से एक - बर्टेंड रसेल

कायरता पूछती है ,‘क्या यह भय रहित है? औचित्य पूछता है क्या यह व्यावहारिक है? अहंकार पूछता है क्या यह लोक प्रिय है?’किन्तु अंतःकरण पूछता है क्या यह न्यायो चित है ?-’पंश्न

सच्ची मित्रता के नियम इस क्रम से सूचित होते हैं , आनेवाले का स्वागत करना और जाने वाले को शीघ्रता से विदा करना - पोप

 ठहरना चाहते अतिथि को जल्दी विदा कर देना और विदा चाहते अतिथि को रोक लेना दोनों समान रूप से आपत्ति जनक होते हैं - होमर

आपका व्यवहार गणित के शून्य की तरह है वह स्वयं  में तो बहुत कीमत नहीं रखता लेकिन वह हर चीज का मूल्य बढ़ा देने में समर्थ है ।

विश्वास दिलाया नहीं जाता , उत्पन्न किया जाता है । वह कसमों से उत्पन्न नहीं होता, आचरण और व्यवहार से पनपता है विश्वसनीय होना ही विष्वास दिलाने की सबसे बड़़ी तरकीब है। - कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर

मनुष्य में तीनों चीजें वास करती हैं मनुष्यता पशुता और दिव्यता- शिवानन्द