बालक प्रहलाद
दैत्य राज हिरणाकश्यपु अधिक बल और शक्ति प्राप्त करने के लिये वन में चले गये। देवताओं ने देखा कि दैत्यराज तो हैं नहीं बिना राजा के प्रजा बेसहारा हो जाती है उस पर विजय आसानी से पाई जा सकती हैइसलिये उन पर आक्रमण कर दिया जाये ऐसे समय किसप्रकार परिस्थितियों को काबू में लाया जाये कोई समझ नहीं पाया और दैत्य इधर उधर भागकर छिप गये। इन्द्र हिरणाकश्यपु की पत्नी कयाधू को इन्द्रपुरी ले जाने लगे। आकाशमार्ग से जाती रोती कलपती कयाधू का बिलखना देवर्षि नारद ने सुना और देखा इन्द्र गर्भवती नारी को ले जा रहे हैं उन्होंने तप बल से जान कर इन्द्र से कहा,‘ देवराज मैं जानता हूं कि कयाधू को इसलिये ले जा रहे हैं कि पुत्र को मारकर दैत्य वंश का नाश कर देंगे। पर देवाराज आप यह कर नहीं पायेंगे। क्योंकि दैत्य रानी के गर्भ में भगवान् का भक्त है, आप इसे अभी छोड़ दे ंतो हितकर होगा।’
क्या ’ इन्द्र चैंक कर बोले,‘ आप सच कह रहे हैं देवर्षि कि कयाधू के गर्भ में भगवान् का भक्त है’?
‘ हां देवराज , भक्त ही नहीं महान् भक्त है।’ देवर्षि ने वीणा के तार छेड़ते हुए कहा
देवराज इन्द्र ने कयाधू से हाथ जोड़कर माफी मांगी और श्रद्धा पूर्वक नमन करते हुए परिक्रमा की और वहीं छोड़ कर अपने लोक चले गये ।
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