Tuesday, 4 February 2025

kanya bhroon hatya kyon

 कन्या भ्रूण हत्या ईश्वर के निर्णय को उलटना है, कन्या ईश्वर का वरदान है, माँ को हम इश्श्वर का रूप मानते हैं दर्जा देते हैं लेकिन उसी माँ की कोख में पल रही भावी माँ की हत्या कर देते हैं। 9 माह तक जिसे अपनी कोख में पालती है अपने रक्त से पोषित करती है उसकी हत्या कर देती है क्योंकि वह उसकी अपनी प्रतिकृति है। एक सामाजिक निर्णय कि बेटी देने के साथ दहेज देना होगा ऐसा अमानवीय निर्णय यह समझ में नहीं आता जो हृदय का टुकड़ा तुम्हारे घर को चलाने हेतु देखभाल हेतु आगे तुम्हारे घर में चिराग देने के लिये जा रही है उसको तुम कपड़ा खाना नही दे सकते। एक नौकरानी को भी यदि काम के लिये रखा जाता है तो उसे खाना कपड़ा दिया जाता है दहेज देना ही गलत है । न कन्या दान की वस्तु है और दान लेने वाला यदि इतना समर्थ नहीं है कि वह घर की होने वाली धुरी को लट्टू की तरह नचा तो सकता है पर उसे धुरी को चिकनाई नहीं प्रदान कर सकता है, ऐसे निकम्मे निखटटुओं को विवाह करना ही नहीं चाहिये बल्कि कन्या के घर वालो को वर पक्ष को उपहार देने चाहिये कि उनकी घर की शोभा है महिला।

☺ार में सुन्दरता, स्वव्छता, एकरूपता, और ऊर्जा लाती है महिला । बेटियां घर की चहक होती हैं। वे खास होती हैं उनका घर में जो स्थान है वह कोई नहीं ले सकता । पुरुष विवाह घर बनाने के लिये करता है। बिन घरनी घर भूत का डेरा जिस घर में लड़की न हो या महिला न हो वह घर घर नहीं होता, एक श्मशान से भी गया गुजरा होता है वह एक ऐसी चिता पर लेटा होता है जिसकी आग उसे झुलसा कर नरक का ऐहसास कराती है। हर गृहणी का ऋणी होता है ।पुरूष तो न कन्या न पुत्र किसी को जन्म नहीं दे सकता हाँ कारक होता है पर कन्या या पुत्र क्या जन्म लेगा दोनांे का ही जिम्मेदार पुरूष है स्त्री तो जन्मदात्री है फिर दोषी महिला क्यों? 


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