Wednesday, 29 January 2025

uktiyan

 हम कहते हैं मैंने अन्न उपजाया परन्तु कारक कोई और है। सूर्य के बिना अन्न नहीं उत्पन्न हो सकता ।

इन्द्रधनुष भ्रम जाल है ।

सूर्य एक है उसने अपने जैसा कोई नहीं बनाया उससे तो दीपक अच्छा जिसने स्वयं प्रकाषित होने के साथ अनेकों दीपक जला दिये ।

चलते हम हैं कहते हैं सूर्य चल रहा है चंद्रमा चल रहा है बादल चल रहे हैं।


स्वाति बूंद पावन परम सीप पड़े मोती बने,माटी में मिल जाये सुवर्ण बने नहीं तो माटी में मिल कर उसे उपजाऊ बना देती है।और बीज प्रस्फुटित होने के लिये तत्पर हो जाते हैं।

नदी ष्षीतल पाटी ओढ़कर अंधेरे में ष्षांत सो जाती है।सूर्य उसकी चादर समेटकर उसे जगाकर कहता है बहो नदी तुम बहो।

नदी को कौन मार्ग बतलाता है ीजारों कोस चलकर सागर से मिल जाती है

स्ूार्य को कौन मार्ग दिखाता है पर अपनी राह चलता जाता है न कोई संगी न साथी  लेकिन ब्रह्मांड में धूमता रहता है 


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