बड़ा कौन -
नभ में अपने बड़े बड़े पंख फैलाये उड़ते बादल ने पर्वत को तुच्छ नजरों से देख अट्ठहास करने लगा। ‘‘पर्वत तू अपने को बड़ा विषाल समझता है मैं देख तुमसे कितने नीचे उड़ रहा हूंॅ ! और तू कुछ नहीं , हिल भी नहीं सकता है। हां हां ! देख मैं सूरज ढक लेता हूंॅ ।’
‘अरे जा निर्लज्ज बहुत न इतरा,’ पर्वत ने दम्भ से कहा ,‘ मेरा मुकाबला कोई नहीं कर सकता तू तो क्या चीज है जरा देर में ही थकेगा और रो पड़ेगा,पष्थ्वी पर मानव तले रौंदा जायेगा । मेरे से जरा छू भी जायेग तो कण कण में बिखर जायेगा’ उसकी बात सुन रहे झरने की खिल खिल हंसी निकल गई । दोनो ने आंखे तरेरी ‘तू इतने
नीचे बहने वाला झरना हमारी हंसी उड़ाता है तेरी यह मजाल । तू किस खेत की मूली है।’
झरना फिर खिलखिलाया,‘ मैं वह चीज हूं जिसने बादल बनाया और पर्वत की बड़ी बड़ी चट्टानों को यूं ही बहा ले जाता हूं ‘‘ यह कह कूद फिर आगे बढ़ गया।
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