Wednesday, 1 June 2016

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जब प्रातः कालीन आकाश मैं अश्रुओं की तरह ोस चू पड़ती है
जब नदी तट के  वृक्ष सूर्य के आकाश मैं जगमगाने लगते है
उनके बिम्ब  तब मेरे ह्रदय  मैं  इतने घने हो उठते हैं
कि  मुझे भान होता है ,यह विश्व
मेरे मन के मानसरोवर मैं तैरता कमल है
 ---- रवींद्र नाथ टैगोर

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