ये अलग है कि खामोश खड़े रहते हैं
फिर भी जो लोग बड़े हैं बड़े रहते हैं।
ऐसे दरवेशों से मिलता है हमारा सिलसिला
जिनके पैरों मैं ताज पड़े रहते हैं
-- डॉ रियाज सागर
यूँ तो तेरे रूख पे है आँचल कश्मीर का
फखरे आलम है पर्वत हिमालय तेरा
जिस पर पड़ती है सूरज की पहली किरण
ऐ मेरे प्यारे वतन ऐ मर प्यारे वतन
अफजल मंगलौरी
मैं अपने कमरे मैं एक ताजमहल छोड़ आया
आज फिर वक्त की पेशानी पर बल छोड़ आया
इसी ख्याल से कि शायद लौटना पड़ जाये
अभी अधूरी लिखी थी वो गजल छोड़ आया
--शहंशाह जैदी
फिर भी जो लोग बड़े हैं बड़े रहते हैं।
ऐसे दरवेशों से मिलता है हमारा सिलसिला
जिनके पैरों मैं ताज पड़े रहते हैं
-- डॉ रियाज सागर
यूँ तो तेरे रूख पे है आँचल कश्मीर का
फखरे आलम है पर्वत हिमालय तेरा
जिस पर पड़ती है सूरज की पहली किरण
ऐ मेरे प्यारे वतन ऐ मर प्यारे वतन
अफजल मंगलौरी
मैं अपने कमरे मैं एक ताजमहल छोड़ आया
आज फिर वक्त की पेशानी पर बल छोड़ आया
इसी ख्याल से कि शायद लौटना पड़ जाये
अभी अधूरी लिखी थी वो गजल छोड़ आया
--शहंशाह जैदी
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