शोहरत की बुलंदी भी पलभर का तमाशा है
जिस शख पर बैठे हैं टूट भी सकती है
शिकस्त पांव हैं मेरे कदम हारे नहीं हैं
मैं जिन राहों से गुजर हूँ वे राहे याद करती हैं।
हम पेड़ थे सए के लिए ज़माने के काम ए
जब सूखे तो जलने के काम आये।
नजर को बदलिए नजारे बदल जायेंगे
सोच को बदलो सितारे बदल जायेंगे
किश्ती को बदलना जरूरी नहीं
धर को बदलिए किनारे बदल जायेंगे
जिस शख पर बैठे हैं टूट भी सकती है
शिकस्त पांव हैं मेरे कदम हारे नहीं हैं
मैं जिन राहों से गुजर हूँ वे राहे याद करती हैं।
हम पेड़ थे सए के लिए ज़माने के काम ए
जब सूखे तो जलने के काम आये।
नजर को बदलिए नजारे बदल जायेंगे
सोच को बदलो सितारे बदल जायेंगे
किश्ती को बदलना जरूरी नहीं
धर को बदलिए किनारे बदल जायेंगे
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